बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले में बगहा शहर स्थित कोट माई स्थान एक प्रसिद्ध शक्ति पीठ है। यहां हर रात देवी-देवताओं का दरबार लगता है। दरबार में लोगों की फरियादें सुनी जाती हैं। स्थानीय लोगों का मानना ​​है कि इस स्थान पर मां दुर्गा की कृपा बरसती है और भक्तों की हर मनोकामनाएं पूरी होती हैं। नवरात्रि के दौरान यहां विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है।

स्पेशल पूजा में बिहार, उत्तर प्रदेश और नेपाल से श्रद्धालु आते हैं। मंदिर परिसर में दो विशाल पतजुड़ के वृक्ष हैं, जिनके बीच मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित है। स्थानीय लोग इन वृक्षों को कम से कम 200 साल पुराना बताते हैं। मान्यता है कि पहले यहां बंजारे पूजा-अर्चना करते थे और बाद में यह स्थान सिद्ध स्थल बन गया।

कोट माई स्थान की सबसे खास बात यह है कि यहां हर रात देवी-देवताओं का दरबार सजता है। स्थानीय लोगों और बुजुर्गों का दावा है कि वे खुद इस अलौकिक घटना के गवाह हैं। उनका कहना है कि इस दरबार में हर दिन देवी-देवता हाजिरी लगाते हैं और लोगों की फरियादें सुनते हैं।

नवरात्रि के नौ दिनों तक यहां विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है, जिसमें मुख्य पुजारी विधि-विधान से मां दुर्गा की पूजा करते हैं। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु मां के दर्शन के लिए आते हैं। कुछ भक्त अपनी मनोकामना लेकर आते हैं, तो कुछ अपनी पूरी हुई मनोकामनाओं के लिए मां का आभार व्यक्त करने और प्रसाद चढ़ाने आते हैं।

मान्यता है कि सच्चे मन से की गई मुरादें यहां जरूर पूरी होती हैं। यही वजह है कि बिहार और उत्तर प्रदेश के अलावा पड़ोसी देश नेपाल से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं। यह शक्ति पीठ एक खुले स्थान पर स्थित है। यहां दो विशाल पतजुड़ के वृक्ष हैं, जिनके बीच मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित है। यह स्थान बेहद ही मनोरम और शांत है।

स्थानीय लोगों की माने तो पुराने समय में यह स्थान झाड़ियों से घिरा हुआ था। लेकिन जैसे-जैसे नगर परिषद का विकास और विस्तार हुआ, इस मंदिर के स्थान को साफ-सुथरा कर दिया गया। आज भी मां की मूर्ति उन्हीं पतजुग वृक्षों के बीच एक पक्के चबूतरे पर विराजमान है। हालांकि, सुरक्षा के उद्देश्य से मिट्टी से बनी उस मूर्ति को पीतल के गोल आवरण से ढक दिया गया है

स्थानीय लोगों का मानना ​​है कि ये वृक्ष कम से कम दो सौ साल पुराने हैं। इसी पतजुग के बीजों से दुर्गा जी की सिद्ध माला भी बनाई जाती है। पूर्वजों के अनुसार, पहले यह स्थान बंजारों का पूजा स्थल था। जब बंजारे चले गए, तो यहां के लोगों ने पूजा-अर्चना शुरू कर दी। धीरे-धीरे यह स्थान सिद्ध स्थल बन गया। अब यहां दूर-दूर से लोग अपनी मनोकामनाएं पूरी करने और मां के दर्शन के लिए आते हैं।

स्थानीय लोगों के बीच मान्यता है कि रात में यहां देवताओं का दरबार लगता है। कई लोगों ने रात में यहां अजीबोगरीब आवाजें और रोशनी देखने का दावा करते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि उनके पूर्वज इस अलौकिक घटना के गवाह रहे हैं।

मान्यता के अनुसार, इस स्थान से कुछ ही दूरी पर मां काली का मंदिर स्थित है। स्थानीय लोगों का मानना है कि मां काली हर रात कोट माई स्थान पर मिलने आती हैं। उन्होंने बताया कि उनके पूर्वजों ने अक्सर रात के समय एक अद्भुत सुगंध वाली महिला को देखा था, जो सफेद वस्त्र पहने और हाथ में खप्पड़ जैसी कोई चीज पकड़े कोट माई स्थान की ओर जाती हुई दिखाई देती थी।

नवरात्रि में अष्टमी के दिन रात को निशा पूजा का आयोजन किया जाता है। इस विशेष पूजा को देखने और इसमें शामिल होने के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है। हर साल स्थानीय लोगों के सहयोग से इस शारदीय नवरात्रि पूजा का भव्य आयोजन किया जाता है।