भारत और नेपाल में माताएं अपने बेटों की लंबी उम्र की कामना के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत रखती हैं। यह व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जो इस साल 25 सितंबर को है। इस दिन माताएं निर्जला उपवास रखती हैं और भगवान श्रीकृष्ण से अपने बच्चों की सुरक्षा और समृद्धि की प्रार्थना करती हैं। इस व्रत की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी जब भगवान श्रीकृष्ण ने अभिमन्यु के पुत्र को मृत्यु के बाद पुनर्जीवित किया था।

बेटों के लिए जितिया व्रत

जीवित्पुत्रिका व्रत, जिसे जितिया भी कहा जाता है एक महत्वपूर्ण हिंदू व्रत है जो माताएं अपने पुत्रों के कल्याण के लिए रखती हैं। यह व्रत माता और पुत्र के बीच के अनोखे और अटूट बंधन का प्रतीक है। यह व्रत हमें बताता है कि मां अपने बच्चे के लिए कितना त्याग कर सकती है और उसकी खुशी के लिए कैसे कठोर तपस्या भी कर सकती है।

क्यों किया जाता है जितिया

पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत के युद्ध में जब द्रोणाचार्य की मृत्यु हुई, तो उनके पुत्र अश्वत्थामा ने क्रोध में आकर ब्रह्मास्त्र चला दिया। जिसकी वजह से अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे की मौत हो गई। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा की संतान को फिर से जीवित कर दिया। उसी बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया। मान्यता है कि तभी से अपनी संतान की लंबी आयु के लिए माताएं जितिया का व्रत करने लगीं।

व्रत के दिन क्या किया जाता है

जीवित्पुत्रिका व्रत के दिन माताएं सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि से निचुद्ध होकर व्रत का संकल्प लेती हैं। इसके बाद पूरे दिन अन्न और जल ग्रहण नहीं किया जाता है। माताएं कथा सुनती हैं, भजन गाती हैं और भगवान से अपने बच्चों की लंबी उम्र की कामना करती हैं। व्रत के दूसरे दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। पारण से पहले माताएं फिर से स्नान करती हैं और पूजा करती हैं। इसके बाद प्रसाद ग्रहण करके व्रत खोला जाता है।