OMG! दिन में सरकारी टीचर, शाम होते बन जाते हैं डिलीवरी बॉय; बिहार के इस शिक्षक की कहानी जान अंदर से हिल जाएंगे

Bihar Teacher News: भागलपुर के शिक्षा अनुदेशक अमित सिन्हा को अपने परिवार की आर्थिक मदद के लिए दिन में स्कूल और रात में ऑनलाइन फूड डिलीवरी बॉय का काम करना पड़ता है। शिक्षा अनुदेशकों का वेतन केवल आठ हजार रुपये है, जो परिवार चलाने के लिए पर्याप्त नहीं है।

Bhagalpur News: बिहार के भागलपुर के एक सरकारी शिक्षा अनुदेशक अमित सिन्हा को अपनी जीविका चलाने के लिए अतिरिक्त काम करना पड़ रहा है। वे दिन में सरकारी स्कूल में बच्चों को पढ़ाते हैं और रात में फूड डिलीवरी करते हैं। उन्हें मात्र ₹8000 मानदेय मिलता है, जो उनके परिवार का खर्च उठाने के लिए पर्याप्त नहीं है। इस कम वेतन के कारण उन्हें अपनी बीमार मां और बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।

दरअसल, बिहार के सरकारी स्कूलों में छात्रों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए शिक्षा अनुदेशकों की नियुक्ति की गई है। हालांकि, कम वेतन और सुविधाओं के अभाव में इन अनुदेशकों का जीवन मुश्किल हो गया है। भागलपुर के सबौर प्रखंड के मध्य विद्यालय रजंदीपुर में कार्यरत शिक्षा अनुदेशक अमित सिन्हा इसका जीता-जागता उदाहरण हैं। अमित दिन में स्कूल में बच्चों को शारीरिक शिक्षा देते हैं। शाम को वे ऑनलाइन फूड डिलीवरी का काम करते हैं। इससे ही वे अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं।

अमित सिन्हा को मात्र ₹8,000 मानदेय मिलता है। इस कम वेतन में आज के समय में परिवार चलाना बेहद मुश्किल है। अमित के परिवार में उनकी बीमार मां और बच्चे भी हैं। मां का इलाज और बच्चों की पढ़ाई का खर्च इस वेतन से चलाना असंभव है। अमित बताते हैं कि उनलोगों को वेतन के रूप में आठ हजार रुपये मिलता है, जबकि आठ रुपये में आज की तारीख में परिवार चलाना काफी परेशानी की बात है। घर का खर्चा चलाने के लिए उन्हें अतिरिक्त काम करना पड़ता है।

अमित कहते हैं कि मेरे ऊपर परिवार चलाने की जिम्मेदारी है। मेरे घर में बच्चों के अलावे बूढ़ी मां हैं। अक्सर उनकी तबीयत भी खराब रहती है। ऐसे में उनके उचित इलाज समेत घर के अन्य खर्चे के लिए भी एक सम्मानित राशि की जरूरत होती है। आठ हजार के वेतन में घर का खाना खर्चा चलाना भी मुश्किल होता है। दवा इलाज कराने की नौबत आए तो मुसीबत टूट पड़ती है। स्कूल के प्रधानाध्यापक विनोद कुमार अमित के इस काम का समर्थन करते हैं। उनका कहना है कि स्कूल के बाद शिक्षक अपनी आजीविका के लिए अन्य काम करें, इसमें कोई बुराई नहीं है।

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