सद्गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन को बड़ी राहत, सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की ये याचिका

सुप्रीम कोर्ट ने ईशा फाउंडेशन के खिलाफ दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज कर दी, जिसमें दो महिलाओं को जबरन आश्रम में रखने का आरोप था। अदालत ने बताया कि दोनों महिलाएं बालिग हैं और स्वेच्छा से आश्रम में रह रही हैं। तमिलनाडु पुलिस की रिपोर्ट में भी अवैध हिरासत के कोई सबूत नहीं मिले।

नई दिल्ली: शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने सद्गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन के खिलाफ दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज कर दी, जिसमें संगठन पर दो महिलाओं को बंधक बनाकर रखने का आरोप लगाया गया था। यह याचिका डॉ. एस. कामराज, जो एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं, ने दायर की थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि उनकी दो बेटियां कोयंबटूर में स्थित ईशा फाउंडेशन में जबरन रखी जा रही हैं।

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि दोनों लड़कियां बालिग हैं और उन्होंने स्वयं यह बयान दिया है कि वे स्वेच्छा से आश्रम में रह रही हैं और किसी भी प्रकार का दबाव उन पर नहीं है। न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने पुलिस द्वारा सौंपी गई स्थिति रिपोर्ट पर भी ध्यान दिया, जिसमें कोई अवैध हिरासत का प्रमाण नहीं मिला।

बेंच ने यह भी कहा कि चूंकि यह मामला बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका से संबंधित है, जिसमें गुमशुदा या अवैध रूप से हिरासत में लिए गए व्यक्ति को अदालत में पेश करने की मांग की जाती है, इसलिए इस पर आगे कोई निर्देश देना जरूरी नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इस याचिका को बंद करने का आदेश आगे पुलिस को किसी जांच को आगे बढ़ाने से नहीं रोकेगा।

अदालत ने यह भी कहा कि जब किसी संस्था में महिलाएं और नाबालिग बच्चे होते हैं, तो आंतरिक शिकायत समिति का गठन अनिवार्य होता है।तमिलनाडु पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी रिपोर्ट में बताया था कि ईशा फाउंडेशन के आश्रम में किसी भी प्रकार की अवैध हिरासत का कोई सबूत नहीं मिला है।

N Nath
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