साईं बाबा को मानने वाले तो पूरे देश में हैं, लेकिन वाराणसी में उनके मूर्तियों को लेकर बवाल मचा हुआ है। सनातन रक्षक दल वाराणसी के कई हिंदू मंदिरों से साईं बाबा की मूर्तियां हटा रहा है, उनका कहना है कि हिंदू मंदिरों में साईं बाबा की मूर्तियां नहीं होनी चाहिए। इस विवाद की जड़ में साईं बाबा की पहचान को लेकर पुरानी बहस है कि आखिर वो हिंदू थे या मुस्लिम?

दरअसल, साईं बाबा एक रहस्यमयी संत हैं, जिनके भक्त देश भर में फैले हैं, लेकिन उनकी असली पहचान आज तक एक पहेली बनी हुई है। ना तो उनका जन्म स्थान किसी को पता है और ना ही उनके माता-पिता का नाम। सिर्फ एक बार अपने एक भक्त के जिद करने पर उन्होंने बताया था कि उनका जन्म 28 सितंबर 1836 को हुआ था। तभी से उनके भक्त हर साल 28 सितंबर को उनका जन्मदिन मनाते हैं।

साईं बाबा का असली नाम क्या था, ये भी एक रहस्य है। कुछ लोग उन्हें चांद मियां कहते थे, तो कुछ उन्हें हिंदू मानते थे। साईं बाबा ने अपना अधिकतर जीवन एक पुरानी मस्जिद में बिताया, जिसे वो 'द्वारका माई' कहते थे। उनके पहनावे से तो लोग उन्हें मुस्लिम समझते थे, लेकिन 'द्वारका माई' के प्रति उनके प्रेम और श्रद्धा को देखकर कुछ लोगों का मानना था कि वो हिंदू हैं।

साईं बाबा ने हमेशा जाति-पाति और धर्म से ऊपर उठकर सबकी सेवा की। कुछ लोग उन्हें फकीर मानते थे, जो अधिकतर समय समाधि में लीन रहते थे और भीख मांगकर खाते थे। लेकिन धीरे-धीरे जब लोगों ने उनके चमत्कार देखे, तो उन्हें लगा कि ये तो कोई भगवान का अवतार हैं। कुछ लोग उन्हें भगवान दत्तात्रेय का अवतार मानते हैं, तो कुछ भगवान शिव का।

लेकिन सनातन रक्षक दल का कहना है कि हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, किसी भी मंदिर में मृत व्यक्ति की मूर्ति स्थापित करके पूजा करना मना है। हिंदू मंदिरों में केवल पंच देवों सूर्य, विष्णु, शिव, शक्ति और गणपति की ही मूर्तियां स्थापित की जा सकती हैं और उनकी ही पूजा की जा सकती है।

इससे पहले शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने भी साईं पूजा का विरोध किया था। उनका कहना था कि साईं बाबा की महात्मा के रूप में पूजा की जा सकती है लेकिन परमात्मा के रूप में नहीं। साईं बाबा को लेकर ये विवाद नया नहीं है, लेकिन वाराणसी में मूर्ति हटाने की घटना ने इसे फिर से हवा दे दी है। देखना होगा कि आने वाले दिनों में ये विवाद किस रूप में सामने आता है।