नई दिल्ली: आतिशी मार्लेना ने शनिवार शाम दिल्ली की 8वीं मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री बनीं आतिशी ने राजभवन में हुए समारोह में उपराज्यपाल ( LG ) वीके सक्सेना से शपथ ली। आतिशी के साथ सौरभ भारद्वाज, गोपाल राय, कैलाश गहलोत, इमरान हुसैन और मुकेश अहलावत ने मंत्री पद की शपथ ली। 70 सदस्यों वाली दिल्ली विधानसभा में आम आदमी पार्टी के 62 विधायक हैं। ऐसे में अरविंद केजरीवाल के बाद पार्टी में कई नेताओं को मंत्री पद की उम्मीद थी।

आतिशी के छोटे मंत्रिमंडल के पीछे लालू यादव कनेक्शन

मीडिया में भी कई नामों की चर्चा थी, लेकिन अंततः केवल 5 विधायकों को ही मंत्री बनाया गया। यह जानना दिलचस्प है कि आतिशी के छोटे मंत्रिमंडल के पीछे लालू प्रसाद यादव का क्या कनेक्शन है? अब आप सोच रहे होंगे कि आतिशी और लालू यादव का क्या लेना-देना? आपके पास पूर्ण बहुमत है और RJD का दिल्ली में कोई विधायक नहीं है। तो आइए समझते हैं कि दोनों का कनेक्शन क्या है।

आतिशी के छोटे मंत्रिमंडल के पीछे लालू यादव का एक खास कनेक्शन है। यह कहानी 1990 के दशक के अंत और 2000 के दशक की शुरुआत की है। उस समय देश और राज्यों में गठबंधन की सरकारें होती थीं। सत्ता में बनी रहने के लिए पार्टियां अपनी सुविधानुसार कैबिनेट का विस्तार कर लेती थीं। कई नेताओं ने कैबिनेट में सदस्यों को शामिल करने की छूट का फायदा उठाया।

मुलायम से लेकर शिंदे तक छूट के उठाये फायदे

मुलायम सिंह यादव (98 मंत्री), मायावती (87 मंत्री), कल्याण सिंह (93 मंत्री), राम प्रकाश गुप्ता (91 मंत्री), ज्योति बसु, राजनाथ सिंह (86 मंत्री) और सुशील कुमार शिंदे (69 मंत्री) जैसे नेता बड़े मंत्रिमंडल चलाते थे। लेकिन चर्चा का विषय तब बने जब लालू प्रसाद यादव ने दो मौकों पर इस छूट का जमकर फायदा उठाया।

पहली बार 24 जुलाई 1997 को जब चारा घोटाले में जेल जाने से पहले लालू ने पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया। राबड़ी देवी की सरकार बनाने के लिए लालू ने जनता दल को तोड़कर राष्ट्रीय जनता दल बनाई। साथ ही समर्थन के बदले में 70 से अधिक विधायकों को मंत्री बना दिया। कहा जाता था कि राबड़ी देवी की सरकार को सपोर्ट करने के एवज में 70 से ज्यादा विधायकों को मंत्री बना दिया।

छूट का लालू यादव ने खूब किया इस्तेमाल

लालू ने इस छूट का इस्तेमाल दूसरी बार साल 2000 में किया। विधानसभा चुनाव में RJD के 124 विधायक जीते। कुछ दिनों के लिए नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने, लेकिन बहुमत परीक्षण में फेल होने के बाद राबड़ी देवी फिर से मुख्यमंत्री बनीं। उनकी सरकार को कांग्रेस, निर्दलीय, झामुमो और वाम दलों का समर्थन मिला। सरकार गठन के दौरान राबड़ी देवी ने 70 मंत्री बनाए, जो 2003 तक बढ़कर 82 हो गए। RJD के खिलाफ चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस के 30 में से 29 विधायक मंत्री बन गए थे। यानी तब झारखंड के अलग होने के बाद 243 विधायकों वाली विधानसभा के करीब 34 फीसदी विधायक राबड़ी कैबिनेट का हिस्सा थे।

मंत्रियों को बांटने के लिए मंत्रालय पड़ गए कम

हालात ऐसे हो गए थे कि मंत्रियों को बांटने के लिए मंत्रालय कम पड़ गए थे। यह खबर मीडिया में खूब चली। लालू यादव उस समय अपने राजनीतिक करियर के चरम पर थे। उनका कोई भी फैसला, अच्छा या बुरा, सुर्खियां बन जाता था। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी केंद्र में 24 पार्टियों के साथ गठबंधन सरकार चला रहे थे। उन्हें समर्थन देने वाले सभी दलों के नेता मंत्री बनना चाहते थे। नतीजतन, वाजपेयी की कैबिनेट में 80 सदस्य हो गए थे।

2003 में संविधान का 91वां संशोधन

केंद्र और राज्यों में जंबो कैबिनेट पर रोक तब लगी जब 2003 में वाजपेयी सरकार ने संविधान का 91वां संशोधन किया। अनुच्छेद 164 में खंड 1A जोड़ा गया। इसके अनुसार, केंद्र या राज्यों में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या कुल सांसदों या विधायकों के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती। यही कारण है कि दिल्ली में 70 विधायकों वाली विधानसभा में 62 विधायक होने के बावजूद आतिशी केवल 5 मंत्री ही बना पाई हैं।