आरा शहर में स्थित प्रसिद्ध मां आरण्य देवी मंदिर में शारदीय नवरात्रि के पावन अवसर पर भक्तों का तांता लगा हुआ है। यह मंदिर भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है और मान्यता है कि यहां की गई पूजा अर्चना से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

नवरात्रि के नौ दिनों तक चलने वाले इस धार्मिक उत्सव के दौरान मंदिर को भव्य तरीके से सजाया जाता है और हजारों की संख्या में श्रद्धालु मां के दर्शन और पूजा अर्चना के लिए उमड़ते हैं। मंदिर समिति द्वारा पूजा पाठ की व्यवस्था के लिए विशेष प्रबंध किए जाते हैं।

मां आरण्य देवी मंदिर का आरा शहर के इतिहास में भी महत्वपूर्ण स्थान है। ऐसा माना जाता है कि इसी मंदिर के नाम पर शहर का नाम आरा पड़ा है। मंदिर में स्थापित काले पत्थरों की बनी महासरस्वती की विशाल मूर्ति और महालक्ष्मी की मूर्ति भक्तों के आकर्षण का केंद्र होती हैं।

मंदिर परिसर में राम भक्त हनुमान और भगवान शिव की मूर्ति के साथ ही भव्य राम दरबार भी स्थापित है। इस मंदिर को किला की देवी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि यहां भक्त अपनी मन्नत पूरी होने तक घी के दीपक जलाते हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस स्थल पर प्राचीन काल में केवल आदिशक्ति की प्रतिमा स्थापित थी और चारों ओर घना वन था। पांडवों ने अपने वनवास के दौरान यहां कुछ समय बिताया था और आदिशक्ति की पूजा अर्चना की थी। मान्यता है कि देवी ने स्वप्न में युधिष्ठिर को आरण्य देवी की प्रतिमा स्थापित करने का आदेश दिया था।

एक अन्य कथा के अनुसार, द्वापर युग में इस क्षेत्र पर राजा मयूरध्वज का शासन था। उनके शासनकाल में भगवान श्रीकृष्ण अपने बड़े भाई बलराम के साथ यहां पधारे थे। श्रीकृष्ण ने राजा की दानवीरता की परीक्षा लेने के लिये उनसे अपने सिंह के भोजन हेतु राजकुमार के दाहिने हाथ का मांस मांगा। जब राजा और रानी अपने पुत्र को आरा (लकड़ी चीरने का औजार) से चीरने लगे तो देवी प्रकट हुई और उन्हें दर्शन दिये। तब से इस नगर का नाम आरा पड़ा।

कहा जाता है कि अपने गुरु महर्षि विश्वामित्र के साथ धनुष यज्ञ में जाने से पहले भगवान श्री राम ने भी यहां मां आरण्य देवी की पूजा अर्चना की थी। यह मंदिर आज भी श्रद्धा और आस्था का केंद्र बना हुआ है और यहां आने वाले भक्तों को मां आरण्य देवी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।