KK Pathak: बेतिया राज और केके पाठक की एंट्री, अकबर के जमाने का रियासत आज चर्चा में क्यों है; जानें

Bihar Jamin Survey: बिहार के कड़क आईएएस अधिकारी केके पाठक बेतिया राज की हजारों एकड़ जमीन को अतिक्रमण मुक्त कराने में जुटे हैं। आइये जानते हैं बेतिया राज का इतिहास।

Bettiah Raj History: मुगल बादशाह अकबर के जमाने से चला आ रहा एक महत्वपूर्ण रियासत आज फिर से चर्चा में है। बिहार-यूपी में फैली इसकी हजारों एकड़ जमीन और अरबों की संपत्ति पर अवैध कब्जे और लूट-खसोट के चलते IAS अधिकारी केके पाठक ने कार्रवाई कर दी है। बता दें कि केके पाठक अपने सख्त रवैये और कानून के प्रति निष्ठा के लिए जाने जाते हैं, उन्होंने बेतिया राज की जमीन को अतिक्रमण मुक्त कराने के लिए पांच अधिकारियों की टीम बनाई है।

क्या रहा है बेतिया राज का इतिहास

बेतिया राज का इतिहास उतार-चढ़ाव और दिलचस्प घटनाओं से भरा रहा है। मुगल शासनकाल में बिहार को 'सरकार' नामक छोटे-छोटे प्रशासनिक इकाइयों में बांटा गया था। चंपारण भी उनमें से एक था। 1579 में जब बंगाल, बिहार और उड़ीसा में विद्रोह हुआ तो अकबर ने अपने सेनापति उदय करण सिंह को इसे कुचलने का जिम्मा सौंपा। विजय के बाद उदय करण सिंह को चंपारण सरकार का शासक बनाया गया। उदय करण सिंह और उनके पुत्र जदु सिंह ने अपने शासनकाल में चंपारण की खुशहाली के लिए बहुत काम किया। जदु सिंह के पुत्र उग्रसेन सिंह को 1629 में मुगल बादशाह शाहजहां ने 'राजा' की उपाधि दी। इस तरह उग्रसेन सिंह बेतिया राज के पहले राजा बने।

उनके बाद गज सिंह और फिर दिलीप सिंह बेतिया की गद्दी पर बैठे। 1715 में दिलीप सिंह के बाद उनके पुत्र ध्रुव सिंह राजा बने। ध्रुव सिंह को बेतिया राज के सबसे सफल शासकों में गिना जाता है। उन्होंने अपनी राजधानी सुगांव से बेतिया स्थानांतरित की, जिससे बेतिया शहर का महत्व बढ़ गया। ध्रुव सिंह के कोई बेटा नहीं था, सिर्फ दो बेटियां थीं। उन्हें डर था कि उनके बाद उनका राज्य उनके भाइयों के हाथों में चला जाएगा। इसलिए उन्होंने अपनी मृत्यु से पहले ही अपनी बेटी के बेटे युगल किशोर सिंह को राजा घोषित कर दिया।

1762 ईस्वी में ध्रुव सिंह की मृत्यु के बाद युगल किशोर सिंह को राजगद्दी के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। एक तरफ उनके मामा के भाई राजगद्दी हथियाने की फिराक में थे, तो दूसरी तरफ ईस्ट इंडिया कंपनी का बढ़ता प्रभाव एक बड़ा खतरा बनता जा रहा था। हालात से घिरे युगल किशोर सिंह ने 1766 में ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह कर दिया। ईस्ट इंडिया कंपनी ने कर्नल बार्कर के नेतृत्व में एक विशाल सेना भेजी जिसने बेतिया पर कब्जा कर लिया। युगल किशोर सिंह को अपनी जान बचाकर भागना पड़ा और चंपारण पर कंपनी का अधिकार हो गया। बाद में 25 मई 1771 को युगल किशोर सिंह ने पटना राजस्व परिषद के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।

युगल किशोर सिंह की मृत्यु 1784 में हो गई। उनके बाद उनके पुत्र बृज किशोर सिंह को बेतिया की जागीर मिली। 1816 में बृज किशोर सिंह की मृत्यु के बाद उनके बेटे आनंद किशोर सिंह ने सारण के कलेक्टर के सामने औपचारिक रूप से बेतिया का शासक बनने की घोषणा की। उन्हें 'महाराजा' की उपाधि दी गई। आनंद किशोर सिंह कला और संस्कृति के प्रेमी थे। उनके शासनकाल में बेतिया में ध्रुपद गायन को विशेष प्रोत्साहन मिला।

महाराजा आनंद किशोर सिंह का निधन 29 जनवरी 1838 को हो गया। उनकी कोई संतान नहीं थी, इसलिए उनके भाई नवल किशोर सिंह राजा बने। नवल किशोर सिंह ने बेतिया राज्य का विस्तार किया और कई विकास कार्य किए। 25 सितंबर 1855 को नवल किशोर सिंह का निधन हो गया। उनके बाद उनके पुत्र राजेंद्र किशोर सिंह गद्दी पर बैठे। उनके शासन काल में बेतिया में रेलवे लाइन बिछाई गई और पहली ट्रेन चली। उन्होंने बेतिया में एक तारघर भी बनवाया।

राजेंद्र किशोर सिंह का निधन 28 दिसंबर 1883 को हुआ। उनके बाद महाराजा हरेंद्र किशोर सिंह बेतिया के शासक बने। वे बेतिया राज के अंतिम महाराजा थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। 24 मार्च 1893 को उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु के बाद ब्रिटिश सरकार ने बेतिया राज की संपत्ति की बिक्री पर रोक लगा दी। उनकी दूसरी पत्नी 27 नवंबर 1954 तक बेतिया राजघराने में रहीं। उसके बाद से बेतिया राज का अस्तित्व समाप्त हो गया।

मुगल काल से लेकर ब्रिटिश राज तक बेतिया राज बना रहा। इस दौरान इस रियासत ने कई उतार-चढ़ाव देखे। लेकिन महारानी जानकी कुंवर की 1954 में मृत्यु के बाद बेतिया राज की बिहार-यूपी में फैली हजारों एकड़ जमीन और सैकड़ों एकड़ में फैले महल आधिकारिक तौर पर सरकार के अधीन आ गए। इन जमीनों पर सालों से अवैध कब्जा है। बेतिया राज के महलों में सरकारी दफ्तरें हैं। लेकिन बिहार भूमि सर्वे 2024 ने एक बार फिर पेंडोरा बॉक्स खोल दिया है।

फिलहाल बिहार राजस्व परिषद इन जमीनों को अतिक्रमण मुक्त कराने में जुटी है और राजस्व परिषद के अध्यक्ष IAS केके पाठक हैं। जो अपने कड़क मिजाज और कायदे-कानून के लिए जाने जाते हैं। बेतिया राज की हजारों एकड़ जमीन पर से अवैध कब्जे हटाने के लिए केके पाठक ने पांच अधिकारियों की नियुक्ति की है। इसी के बाद से बेतिया राज फिर से चर्चा में है।

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