प्रशांत किशोर बिहार की राजनीति में एक नए युग की शुरुआत करना चाहते हैं। इसके लिए वह 35 सालों से चले आ रहे सत्ता के खेल को बदलना चाहते हैं। खास बात यह है कि इस बदलाव के लिए वह उन्हीं नेताओं को अपना चेहरा बना रहे हैं जो इस सत्ता का हिस्सा रहे हैं। सवाल यह है कि क्या 'आयातित' नेताओं की फौज से प्रशांत किशोर बिहार की राजनीति को नई दिशा दे पाएंगे?

प्रशांत किशोर, जिन्हें पीके के नाम से भी जाना जाता है, ने जन सुराज नाम से अपनी पार्टी बनाई है। उनका लक्ष्य बिहार में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के दशकों पुराने शासन को चुनौती देना है। हालां कि पीके की रणनीति पर सवाल उठ रहे हैं क्योंकि वह जिन नेताओं को आगे बढ़ा रहे हैं वे पूर्व में राजद या जदयू से जुड़े रहे हैं।

पवन वर्मा: पवन वर्मा कभी नीतीश कुमार के खास सिपहसालार माने जाते थे। नीतीश कुमार ने पवन वर्मा को राज्यसभा सांसद, पार्टी महासचिव और राष्ट्रीय प्रवक्ता जैसे पदों तक पहुंचाया था। 2020 में उन्होंने नीतीश से मतभेद के बाद जदयू छोड़ दिया। कहा जाता है कि भाजपा और आरएसएस के आगे नीतीश कुमार के झुकने से वह खुश नहीं थे। कुछ समय के लिए वह ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस में भी शामिल हुए लेकिन वहां भी ज्यादा दिन टिक नहीं पाए। अब वह पीके के साथ हैं।

देवेंद्र प्रसाद यादव: अनुभवी नेता देवेंद्र प्रसाद यादव का लंबा सियासी सफर रहा है। 1977 में पहली बार विधायक बने। 1989 में जनता दल के टिकट पर झंझारपुर से सांसद चुने गए। इसके बाद 1991, 1996, 1999 और 2004 में भी सांसद रहे। 1996 में केंद्रीय मंत्री भी बने लेकिन लालू यादव से मतभेद के चलते मंत्री पद छोड़ना पड़ा। बाद में उन्होंने अपनी पार्टी समाजवादी जनता दल डेमोक्रेटिक बनाई जिसका बाद में राजद में विलय हो गया। फिर मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी में भी रहे। अब जन सुराज के साथ हैं।

मोनाजिर हसन: मोनाजिर हसन भी राजद और जदयू दोनों दलों का हिस्सा रह चुके हैं। 1995 में राजद के टिकट पर मुंगेर से विधायक बने। 2009 तक विधायक रहे। लालू यादव के समय में युवा और खेल मंत्री रहे, नीतीश कुमार के नेतृत्व में भवन निर्माण मंत्री रहे। 2014 में जदयू के टिकट पर बेगूसराय से सांसद चुने गए। 2023 में जदयू के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया और अब जन सुराज के साथ हैं।

रामबली चंद्रवंशी: प्रोफेसर से नेता बने रामबली चंद्रवंशी को लालू यादव ने आगे बढ़ाया। राजद के अति पिछड़ा प्रकोष्ठ का प्रदेश अध्यक्ष बनाया। जून 2020 में लालू यादव ने उन्हें एमएलसी बनवाया लेकिन नीतीश कुमार और लालू यादव पर दिए गए बयानों के कारण उनकी सदस्यता रद्द हो गई। विवादों से भी उनका गहरा नाता रहा है।

ऐसा नहीं है कि पीके के साथ सिर्फ पुराने चेहरे ही है। कुछ नए चेहरे भी साथ आए हैं। इनमें से एक हैं जागृति ठाकुर, जो बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की पोती हैं। उनके पिता डॉक्टर हैं और राजनीति से उनका कोई संबंध नहीं है। लेकिन उनके चाचा रामनाथ ठाकुर राज्यसभा सांसद हैं और मोदी सरकार में मंत्री हैं। जागृति नाई जाति से आती हैं और माना जा रहा है कि उनके जरिए पीके अति पिछड़ा वोट बैंक को साधना चाहते हैं।

नए चेहरों में मंगनी लाल मंडल की बेटी प्रियंका भी शामिल हैं। मंगनी लाल मंडल लालू यादव और नीतीश कुमार, दोनों के साथ काम कर चुके हैं। प्रियंका पिछड़े वर्ग की राजनीति में अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाना चाहती हैं।

बुझे हुए कारतूस के सहारे पीके करेंगे राजनीति

बिहार के सियासी पंडितों का मानना है कि दूसरे दलों से आए नेता अब 'बुझे हुए कारतूस' हो चुके हैं। उनसे बहुत उम्मीदें नहीं हैं। नए चेहरे ज्यादा जोश और उमंग के साथ काम कर सकते हैं। इसका इतिहास भी गवाह है। दिल्ली और पंजाब में अरविंद केजरीवाल ने पुराने दलों को हराया था तो उनकी टीम में अधिकतर नए लोग थे।