Patna News: बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। भाजपा अपने हिंदुत्व के एजेंडे पर आगे बढ़ेगी। जेडीयू और आरजेडी जैसे समाजवादी दल अपनी नई रणनीति बनाने में लगे हैं। जेडीयू नेताओं के बयानों से लग रहा है कि वो भी भाजपा की तरह हिंदुत्व की राह पर चल सकते हैं। आरजेडी उपचुनाव में हार के बाद नए समीकरणों की तलाश में है। तेजस्वी यादव यूपी की तरह पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूला अपना सकते हैं।

उपचुनाव रिजल्ट के बाद से ही बिहार की राजनीति में उथल-पुथल मची हुई है। भाजपा अपने हिंदुत्व के मुद्दे पर आगे बढ़ने का मन बना चुकी है। इस बीच प्रदेश के दो बड़े समाजवादी दल, जेडीयू और आरजेडी, अपने भविष्य की रणनीति तय करने में जुटे हुए हैं। हाल ही में जेडीयू नेता और केंद्रीय मंत्री ललन सिंह और सांसद देवेश चंद्र ठाकुर के मुसलमानों को लेकर दिए गए बयान पार्टी के बदले रुख की ओर इशारा कर रहे हैं। नीतीश कुमार की चुप्पी इस बात को और पुख्ता करती है कि जेडीयू भी भाजपा के हिंदुत्व के एजेंडे को अपना सकती है। वक्फ बोर्ड संशोधन बिल पर जेडीयू का रुख भी इसी ओर इशारा करता है।

उपचुनाव में मिली हार ने आरजेडी की चिंता बढ़ा दी है। पार्टी न सिर्फ अपनी दोनों सीटें हार गई, बल्कि सहयोगी सीपीआई (एमएल) को भी हार का सामना करना पड़ा। रामगढ़ में प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह अपने बेटे को भी नहीं जिता पाए। बेलागंज में लालू प्रसाद यादव की कोशिशें भी बेकार साबित हुईं। पार्टी का पारंपरिक मुस्लिम-यादव (एम-वाई) समीकरण और तेजस्वी यादव का बहुजन, अगड़ा, आधी आबादी और पूअर (BAAP) फॉर्मूला भी काम नहीं आया। इस हार के बाद पार्टी के अंदर भी नए समीकरणों की मांग उठने लगी है। जगदानंद सिंह के इस्तीफे की मांग भी जोर पकड़ रही है। आरजेडी के पूर्व एमएलसी आजाद गांधी ने भी इस पर हैरानी जताई है कि जगदानंद सिंह ने अभी तक इस्तीफा क्यों नहीं दिया।

तेजस्वी यादव पर अब गठबंधन की राजनीति छोड़कर नया रास्ता अपनाने का दबाव बढ़ रहा है। माना जा रहा है कि तेजस्वी यादव उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव की तरह पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूला अपना सकते हैं। समाजवादी पार्टी ने इसी फॉर्मूले के सहारे लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में अच्छी सफलता हासिल की थी। इसका मतलब है कि तेजस्वी यादव अब पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक वोट बैंक पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।

आरजेडी भले ही कोई भी नया समीकरण बनाए, लेकिन पार्टी ने लोकसभा चुनाव के दौरान ही सवर्णों से दूरी बनाना शुरू कर दिया था। पार्टी के 23 उम्मीदवारों में से केवल दो ही सवर्ण थे। इनमें से एक जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह थे, जो चुनाव जीत गए। लालू यादव के 'भूराबाल साफ करो' वाले बयान के बाद से ही सवर्ण वर्ग आरजेडी से नाराज चल रहा है। इसके बावजूद जगदानंद सिंह और अनंत सिंह जैसे कुछ सवर्ण नेता आरजेडी के साथ बने रहे।

अगर तेजस्वी यादव पार्टी के पिछड़े-अति पिछड़े नेताओं की सलाह मानते हैं, तो उन्हें सवर्ण वोटों का मोह छोड़ना होगा। पार्टी के कई नेता भी इसी राय के हैं। अगर जगदानंद सिंह से इस्तीफा ले लिया जाता है, तो यह साफ हो जाएगा कि आरजेडी नए समीकरण पर काम कर रही है। इस नए समीकरण में पिछड़े, अति पिछड़े, मुस्लिम और दलित शामिल होंगे, जो कि अखिलेश यादव के पीडीए फॉर्मूले जैसा ही है। जेडीयू नेताओं ललन सिंह और देवेश चंद्र ठाकुर के बयान पार्टी के बदले रुख की ओर इशारा कर रहे हैं।