What Is Belly Landing: फ्लाइट की बेली लैडिंग कब होती है?
Flight Belly Landing: त्रिची एयरपोर्ट पर विमान की बेली लैंडिंग की तैयारी की गई थी। आइए आपको बताते हैं कि विमान की बेली लैंडिंग कब कराई जाती है।
नई दिल्ली: हाइड्रोलिक सिस्टम फेल होने के बाद एयर इंडिया की फ्लाइट त्रिची एयरपोर्ट के ऊपर एक घंटे तक चक्कर लगाती रही है। हाइड्रोलिक काम नहीं करने के कारण फ्लाइट की लैडिंग संभव नहीं थी। संभावित खतरे को देखते हुए एयरपोर्ट ऑथरिटी ने फ्लाइट की बेली लैंडिंग की तैयारी कर ली थी। बेली लैंडिंग के जरिए ही यात्रियों की जान बचाई जा सकती थी। ऐसे में आपके मन में यह सवाल उठ रहा होगा कि बेली लैंडिंग कब कराई जाती है। यह होता क्या है।
दरअसल, विमान में खराबी के बात बेली लैंडिंग कराई जाती है। बेली लैंडिंग के दौरान विमान का चक्का बाहर नहीं आ पाता है। ऐसे में विमान के पेट को रनवे पर घिसकर उतारा जाता है। यह पायलट के लिए आखिरी विकल्प होता है। इसी को बेली लैंडिंग कहते हैं।
वहीं, बेली लैंडिंग में बड़े खतरे भी होते हैं। इससे प्लेन को नुकसान होता है। प्लेन के निचला हिस्सा पूरी तरह से डैमेज हो जाता है। साथ ही यात्रियों को चोट भी पहुंचती है। वहीं, सबसे बड़ा खतरा यह होता है कि प्लेन में आग लग सकती है। यह एक जोखिम भरा स्टेप होता है। बेली लैंडिंग कोई उपाय नहीं बचने पर कराई जाती है।
2005 में यूएस एयरवेज के एक फ्लाइट की बेली लैडिंग कराई गई थी। इस दौरान हंसों के झुंड से विमान टकरा गया था। इसकी वजह से दोनों इंजन फेल हो गए थे। पायलट दल ने हडसन नदी में प्लाइट की लैंडिंग कराई थी। यह सेफ लैंडिंग हुई थी। इसमें यात्रियों को कोई नुकसान नहीं हुआ था। विमान में सभी लोग सुरक्षित थे। उसे हडसन मिरकल कहा जाता है। हालांकि त्रिची एयरपोर्ट पर विमान की लैंडिंग सुरक्षित हो गई है। बेली लैंडिंग की जरूरत नहीं पड़ी है।