यहां से जीतने के बाद मुख्यमंत्री बनने का बढ़ जाता है चांस, नई दिल्ली सीट की कैसी है कहानी?
नई दिल्ली विधानसभा सीट पर अरविंद केजरीवाल, बीजेपी के प्रवेश वर्मा और कांग्रेस के संदीप दीक्षित के बीच कड़ा मुकाबला है। केजरीवाल शिक्षा-स्वास्थ्य में काम के बावजूद भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हैं। वर्मा हिंदुत्व और विकास पर जोर दे रहे हैं, जबकि संदीप दीक्षित अपनी मां शीला दीक्षित के नाम पर समर्थन की उम्मीद कर रहे हैं।;
नई दिल्ली: नई दिल्ली विधानसभा सीट का चुनावी संघर्ष एक बार फिर सुर्खियों में है। इस सीट का ऐतिहासिक महत्व है, क्योंकि यहां से जीतने वाले अक्सर मुख्यमंत्री बनते हैं। 1998 से 2013 तक शीला दीक्षित (कांग्रेस) ने यहां से जीत दर्ज कर तीन बार मुख्यमंत्री पद संभाला। 2013 से अरविंद केजरीवाल (आप) इस सीट पर विजयी रहे हैं। इस बार उनके सामने बीजेपी के प्रवेश वर्मा और कांग्रेस के संदीप दीक्षित जैसे दिग्गज मैदान में हैं।
अरविंद केजरीवाल चौथी बार इस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन उनके लिए चुनौतियां बढ़ गई हैं। शराब नीति से जुड़े भ्रष्टाचार के आरोप और मुख्यमंत्री आवास पर करोड़ों के खर्च को लेकर विरोधियों ने उन्हें घेरा है। हालांकि, उनकी सरकार के शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में किए गए काम उनकी सबसे बड़ी ताकत हैं। सवाल यह है कि क्या यह ट्रैक रिकॉर्ड जनता का विश्वास बनाए रखेगा?
बीजेपी ने प्रवेश वर्मा को उम्मीदवार बनाया है, जो पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे हैं। उन्होंने हिंदुत्व और विकास को चुनावी एजेंडा बनाया है। वर्मा ने केजरीवाल को भ्रष्टाचार और कोविड प्रबंधन पर घेरते हुए बेहतर प्रशासन का वादा किया है। बीजेपी की रणनीति जनता को यह यकीन दिलाने की है कि वह दिल्ली के विकास के लिए उपयुक्त विकल्प है।
दूसरी ओर, कांग्रेस ने शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित पर दांव लगाया है। कांग्रेस को उम्मीद है कि 'दीक्षित' नाम ब्राह्मण और पारंपरिक समर्थकों को वापस लाने में मदद करेगा। संदीप ने नई सोच और पारदर्शिता की बात करते हुए दोनों विरोधियों को 'पुरानी राजनीति' का प्रतीक बताया है।
नई दिल्ली सीट पर ब्राह्मण, पंजाबी, खत्री और दलित मतदाता अहम भूमिका निभाते हैं। अरविंद केजरीवाल ने इन सभी वर्गों में अब तक मजबूत पकड़ बनाए रखी थी, लेकिन इस बार समीकरण बदल सकते हैं।
क्या इस बार भी नई दिल्ली सीट मुख्यमंत्री तय करेगी? तीनों पार्टियों के दांव और मतदाताओं के मूड पर यह निर्भर करेगा।