Waqf Board: 250 साल पुराने शिव मंदिर की जमीन हमारी है, वक्फ बोर्ड के दावे से हिंदू के साथ मुसलमान भी हैरान

Waqf Board News: लखनऊ के सआदतगंज इलाके में ढाई सौ साल पुराने शिव मंदिर को वक्फ बोर्ड ने अपनी संपत्ति घोषित कर दिया है। मंदिर के पास के निवासी और मुसलमान भी इस पर हैरान हैं।

Update: 2024-10-20 05:59 GMT

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के सआदतगंज में एक शिव मंदिर है। यह मंदिर ढाई सौ साल पुराना बताया जाता है। आरोप है कि इस मंदिर को कागजों पर वक्फ बोर्ड की संपत्ति दिखाया गया है। यह मामला आठ साल पहले का है। इसके पीछे समाजवादी पार्टी का हाथ बताया जा रहा है। सवाल उठ रहे हैं कि एक मंदिर वक्फ बोर्ड की संपत्ति कैसे हो सकता है? मामला कोर्ट में है। स्थानीय लोग भी हैरान हैं कि एक मंदिर वक्फ बोर्ड की संपत्ति कैसे हो सकता है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि यह मंदिर ढाई सौ साल से यहीं पर है, तो फिर वक्फ बोर्ड इस पर अपना दावा कैसे कर सकता है? इलाके के मुस्लिम भी यही सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर वक्फ बोर्ड एक मंदिर को अपना कैसे बता सकता है? इस मामले में सबसे बड़ा सवाल यही है कि वक्फ बोर्ड ने मंदिर की जमीन को अपनी संपत्ति कैसे घोषित कर दिया? इस सवाल का जवाब कुछ दस्तावेजों में छिपा है।

दस्तावेज के मुताबिक, राजस्व रिकॉर्ड में खसरा नंबर 1944 शिवालय के नाम दर्ज है। यह जमीन करीब एक बीघा है। यानी खसरा नंबर 1944 शिवालय के नाम पर आवंटित है। वहीं, वक्फ बोर्ड का दस्तावेज 2016 का है। इसमें खसरा नंबर 1944 पर शिवालय होने की बात भी लिखी है। साथ ही, इस शिवालय पर वक्फ का हक भी बताया गया है। यानी मंदिर और मंदिर की जमीन, दोनों को वक्फ बोर्ड ने अपनी संपत्ति बता दिया है।

वहीं, 2013 के एक दस्तावेज में खसरा नंबर 1944 को वक्फ में दर्ज किए जाने को बहुत जरूरी बताया गया है। दरअसल, यह सैयद अब्बास अमीर का हलफनामा है। यह मीर वाजिद अली के मुतवल्ली हैं। यानी उनकी संपत्ति के केयरटेकर हैं। वह इस हलफनामे में वक्फ बोर्ड को कह रहे हैं कि सादतगंज में कई खसरे ऐसे हैं, जिन्हें वक्फ में दर्ज किया जाना चाहिए। और इन खसरों में शिवालय की जमीन भी है। यानी खसरा नंबर 1944।

इसी हलफनामे में सैयद अब्बास अमीर कहते हैं कि मीर वाजिद अली से सरकार ने कुछ जमीन ली थी। इसके बदले में सरकार ने मीर वाजिद अली को सआदतगंज में जमीन दे दी थी। अब इस जमीन का एक बड़ा हिस्सा वक्फ में दर्ज नहीं है। इसी जमीन में शिवालय की जमीन यानी खसरा नंबर 1944 भी आता है। इससे साफ है कि खसरा नंबर 1944, जो शिवालय की जमीन है, उसे वक्फ बोर्ड को अपनी संपत्ति में शामिल करने के लिए कहा गया। और वक्फ बोर्ड ने दर्ज कर लिया।

आरोप है कि मंदिर की जमीन पर वक्फ बोर्ड ने पहले अवैध कब्जा किया। फिर उसे बेच भी दिया। अवैध कॉलोनी भी बसा दी। दरअसल, साल 2016 में शिवालय और उसके आसपास की जमीन को अपनी भूमि बता दिया। इसके बाद वक्फ बोर्ड ने जमीन माफिया मुख्तार अंसारी की पत्नी अफशा अंसारी को लीज पर दे दी। आरोप है कि अफशा अंसारी ने वक्फ बोर्ड से लीज पर ली जमीन पर प्लॉट काटकर बेच दिए।

और यह सब हुआ 2013 से 2016 के दौरान। जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे। और आजम खान ताकतवर मंत्री थे। और माफिया मुख्तार अंसारी का सिक्का चलता था। अब यह मामला तब सामने आया, जब शमील शम्सी नाम के व्यक्ति ने इन गड़बड़ियों की शिकायत की। अब सवाल उठात है कि आखिर एक मंदिर वक्फ की संपत्ति कैसे हो सकता है? मंदिर की जमीन वक्फ की जमीन कैसे हो सकती है? क्योंकि वक्फ तो उस संपत्ति को कहते हैं, जो एक मुसलमान दान करता है। और कोई मुसलमान मंदिर तो दान नहीं कर सकता। हालांकि इन सवालों के जवाब फिलहाल वक्फ बोर्ड के पास नहीं हैं।

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